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Showing posts from September, 2010

शिवोहम

एक मुनि की एक कुटी में , स्वर गुंजित , अक्षत चन्दन से , तिलक सुशोभित भौं मध्य में , शिव-त्रिशूल , भंगम , भभूत से || चन्द्र जटा में शीतल बैठा , गंगा की धरा जो बहती , सर्प थिरकता कुंडली साधे , एक मूल पर कितने धागे || भौं-भंगिमा तनी-तनी है , है ललाट पर शीतल काया , तीन नेत्र में क्रोध की अग्नि , सहसा तन पर भस्म रमाया || कहत रहीम सुनो भाई साधो , शिव ही सुन्दर , शिव शक्ति है , परम धीर , पौरुष का साधक , शिव स्वरुप , शिव ही भक्ति है || ... ऋतु की कलम से