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Showing posts from November, 2010

श्यामल स्मृति

समेटी चाँद की किरणे, बिखेरी सुरमई सुबह, सनी आलाप में आवाज़, घनी थी बादलों की साज़, सजाई सपनो की दुनिया, चला मैं फासलों के साथ, छिटकते कण मेरी साँसों के, श्यामल थी मेरी आवाज़ | करों में थाम के सपने, उरों में बाँध आशाएं, चला मैं बादलों के साथ, थमा मैं बादलों के साथ, कड़ी एक स्नेह की, रोके खड़ी, मुझको है हर-पल-क्षण, रुका मैं आँधियों से और चला मैं आँधियों के साथ | तटों पे आके लहरें, आती हैं, रुक जाती एक पल को, मुझे आभास क्यूँ होता है तेरे साथ होने का, चुरायी याद की परतें, मेरी पूछे बिना मुझ बिन, कुरेदी प्रेम की पाती, लिखी जो तारे हर पल गिन | मेरे कमरे में कलमों की है इक गट्ठर अँधेरे में, है पन्नो में तेरे शब्दों की मदमस्ती अँधेरे में, सहेजी उसकी दृष्टि, अपनी दृष्टि में न जाने कब, वो मेरे साथ आ पहुंची, जो तेरे साथ थी एक दिन | तेरी परछाई भी मेरा पता क्यूँ खोज लेती है, तेरे आने का अंदेसा मुझे हर रोज़ देती है, झरोखे से मैं तुझको देखता हूँ बंद आँखों से, भुलाना चाहूं भी तो याद तेरी आ ही जाती है | ...ऋतु की कलम से