इतने दिनों तक अपनी अनुपस्थिति के लिए माफ़ी चाहती हूँ । अधिकतर समय कविताओं के साथ गुज़र रहा है। एक कविता संग्रह बनाने की कोशिश कर रही हूँ। जल्द ही आपको मेरी रचनाओं पर टिप्पणी करनी होगी। आपका साथ रहा तो, आशा है कि संग्रह जल्द ही पूरा कर लूंगी । सहसा..बैठे-बैठे कुछ पंक्तियाँ मेरी ज़हन में आई .. तुझे है याद.. कश्ती डूबती थी जब किनारे पे, समंदर की लहर में पांव अपना रोज़ धोते थे, न बाती थी, न बाती में थी लौ जलती किनारे पे, अँधेरा मौन था इतना, मगर बस साथ तेरा था । ...ऋतु की कलम से ५.११.2009 जल्द ही अपनी नयी रचनायों के साथ आऊंगी । शुभकामनाएं व शांति ऋतु सिंह