Skip to main content

आपकी कोशिशों का स्वागत है|

तकिये के नीचे पड़ी थी एक किताब,पन्ने बिखरे थे,शब्द सिसकियाँ ले रहे थे॥
कलम का एक कोना झाँक रहा था॥
उसकी खड़खड़ाहट कानो में शोर मचा रही थी और स्याही की छीटें तकिए को भिगो चुकी थी॥
रंग नहीं था उनमे, लेकिन एक आवेश था, एक उत्तेजना थी॥
रुकना तो सीखा ही नहीं था ... कलम जो थी॥
... ऋतु की कलम से

Comments

  1. सही कहा आपने, ये जो कलम है वो रुकना नहीं जानती. ये कलम हमारी, आपकी और औरों की जिन्दगी की तरह है, जो अपने आवेश में चलती ही जाती है. चाहे परिस्थितियां कितनी ही विषम क्यों ना हों. हमें तो बस यही करना चाहिए की सभी बिखरे पन्नों को सहेज-समेट कर जिन्दगी का साथ निभाते रहें.
    :)

    ReplyDelete
  2. blog jagat main aapka sawagat hai.
    ummeed hai aapki qalam bhi hamesha chalti rahegi aur kuchh naya padhne ko milega !!!

    ReplyDelete
  3. आपकी कोशिशों का स्वागत है....बहुत बढ़िया...

    ब्लाग जगत में अभिनंदन ...

    ReplyDelete
  4. स्वागत है हिंदी ब्लॉगजगत पर।
    शुभकामनाएं

    ReplyDelete
  5. आपकी कविता में जो प्रेम कलम और किताब के पन्ने में दिखाया है वो बहुत ही मादक है बहुत सुंदर रचना

    ReplyDelete
  6. शब्द तो गुनगुना ही रहे हैं आपके
    तकिये के नीचे पड़ी थी एक किताब.....

    ReplyDelete
  7. sundar bhavnaye.......lajawab ehsaas bahut accha lagi aapki ye choti aur pyari rachna............

    ReplyDelete
  8. कलम कभी रुक न सके करतीं रहें प्रयास।
    दुनयाँ बेहतर तब बने मुट्ठी में आकाश।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.

    ReplyDelete
  9. स्वागत है।
    बुरा न मानें, अभिव्यक्ति में तार्किक प्रवाह नहीं है। आप की लेखनी में शक्ति है, अभिव्यक्त करते समय नियंत्रण और भावार्थ का ध्यान रखें।

    ReplyDelete
  10. एक अच्छी शुरुआत.... ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है...
    बिखरे पन्नो को समेटिये.... कलम में रोशनाई फिर से भरिये....
    और यूं ही लिखते रहिये.....
    भावनाओं की बर्फ जब-जब पिघलती है...
    शब्द पानी बन के दरिया सी बहती है ...

    ReplyDelete
  11. panno ko bikharo na..syahi chitkao un panno pe taki wo ahsaas amar ho ajye jo dil me aaye
    acha pryas..
    shabdo ko sahi kram do..bahut acha ban jayega prawah

    ReplyDelete
  12. ऋतु जी आपकी कोशिश में हाँ में हाँ मिलाते हुए मैं कहना चाहूँगा कि -

    बन्दूक चलती ,
    तलवारें चलती है -
    खून बहता है,
    इतिहास बनता है |

    कलम चलती है-
    सोच बदलती है ,
    जागृति आती है ,
    समाज बदलता है,
    क्रांति आती है

    और ...
    इतिहास बनता है |


    हार्दिक शुभकामनाएँ !
    सारे संसार में आप खूब नाम कमायें !!
    :)

    ReplyDelete
  13. स्वागत है.शुभकामनायें.

    ReplyDelete
  14. ab shabd siskiyan na len aur siskaariyan bhi na len........balki
    sankalp len ki vah kavi k sar chadh kar nahin ....uski lekhni se srijit ho kar bolenge
    aapka swagat hai
    jai ho !

    ReplyDelete
  15. रंग नहीं था उनमे, लेकिन एक आवेश था, एक उत्तेजना थी॥
    रुकना तो सीखा ही नहीं था ... कलम जो थी


    Well said........wonderful wording and excellent style.......keep writing

    ReplyDelete
  16. splendid...words are so important for thoughts to be expressed...........n you have proved it.....kip it up

    ReplyDelete
  17. U come out with splendid heart touching words...i hope u come out with more new array of thoughts,more reality n wonderful imagination.

    bravo dear....

    ReplyDelete
  18. kalam jojaf.... kalam himmat..

    kalam se hi hai sano soukat....


    BEST OF LUCK... :)

    ReplyDelete
  19. kavita ghathta badhta chand nahi,na iske shabd bikhre hue tare....yah to pura ka pura aakash hai.....aapki maulikta sarthak hai...

    ReplyDelete
  20. excellent work ritu.Infact in ur writigs i can c my feelings which i hv put in my blogs!keep going!

    ReplyDelete
  21. u give words to even those feelings which r intangible.... keep it up....!!!!

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

'मंथन'

इस गगन चलूँ, उस गगन चलूँ, मैं जीवन हूँ, न सहम चलूँ, पग-पग पर कांटें बिछे पड़े, सहते-सहते हर कदम चलूँ |  बचपन न देखा है मैंने, न हि किशोरी का बल ही मिला, निर्भय होकर न चल ही सकूँ, न नव-युवती जीवन ही मिला | रग-रग में आग ही लपटें हैं, पग-पग पथरीली राहें हैं, टूटी-फूटी सी सड़कों पर, रोती माओं की आहें हैं | जीवित हूँ, हूँ पर निर्जर सी, सांसें हैं, वो पर आंहें हैं, सकुचाई  सी,  घबराई सी, धूमिल-धुसरित सी राहें हैं | शीशे के सपने लिए हुए, न इधर चलूँ, न उधर चलूँ, न घबराऊँ, न सकुचाऊँ, न रहम सहूँ, न रसम सहूँ | इक नया सवेरा लायी हूँ, नित नए ज्ञान का कंपन है, मस्तक न झुकनेवाला है, ये मानवता का 'मंथन है' | ...ऋतु की कलम से

श्यामल स्मृति

समेटी चाँद की किरणे, बिखेरी सुरमई सुबह, सनी आलाप में आवाज़, घनी थी बादलों की साज़, सजाई सपनो की दुनिया, चला मैं फासलों के साथ, छिटकते कण मेरी साँसों के, श्यामल थी मेरी आवाज़ | करों में थाम के सपने, उरों में बाँध आशाएं, चला मैं बादलों के साथ, थमा मैं बादलों के साथ, कड़ी एक स्नेह की, रोके खड़ी, मुझको है हर-पल-क्षण, रुका मैं आँधियों से और चला मैं आँधियों के साथ | तटों पे आके लहरें, आती हैं, रुक जाती एक पल को, मुझे आभास क्यूँ होता है तेरे साथ होने का, चुरायी याद की परतें, मेरी पूछे बिना मुझ बिन, कुरेदी प्रेम की पाती, लिखी जो तारे हर पल गिन | मेरे कमरे में कलमों की है इक गट्ठर अँधेरे में, है पन्नो में तेरे शब्दों की मदमस्ती अँधेरे में, सहेजी उसकी दृष्टि, अपनी दृष्टि में न जाने कब, वो मेरे साथ आ पहुंची, जो तेरे साथ थी एक दिन | तेरी परछाई भी मेरा पता क्यूँ खोज लेती है, तेरे आने का अंदेसा मुझे हर रोज़ देती है, झरोखे से मैं तुझको देखता हूँ बंद आँखों से, भुलाना चाहूं भी तो याद तेरी आ ही जाती है | ...ऋतु की कलम से