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Showing posts from June, 2009

न जाने कहाँ.. खो सी गयी!

संजो के रखा था कुछ पन्नों को, पलट के देखा तो सिमटी हुई तस्वीर दिखी, चली जो एक सांस मेरी, उठा एक बवंडर जाने कैसे, धुआं उठा मेरी आँखों से, एक तस्वीर बनी सिमटी हुई सी... सहसा न जाने कहाँ खो सी गयी, आँसुओं की बारी जो आई... घिसटते पाँव से अधरों पे गिरी, सहसा... न जाने खो सी गयी, न जाने कहाँ... खो सी गयी !!! ...ऋतु की कलम से

आपकी कोशिशों का स्वागत है|

तकिये के नीचे पड़ी थी एक किताब,पन्ने बिखरे थे,शब्द सिसकियाँ ले रहे थे॥ कलम का एक कोना झाँक रहा था॥ उसकी खड़खड़ाहट कानो में शोर मचा रही थी और स्याही की छीटें तकिए को भिगो चुकी थी॥ रंग नहीं था उनमे, लेकिन एक आवेश था, एक उत्तेजना थी॥ रुकना तो सीखा ही नहीं था ... कलम जो थी॥ ... ऋतु की कलम से