संजो के रखा था कुछ पन्नों को, पलट के देखा तो सिमटी हुई तस्वीर दिखी, चली जो एक सांस मेरी, उठा एक बवंडर जाने कैसे, धुआं उठा मेरी आँखों से, एक तस्वीर बनी सिमटी हुई सी... सहसा न जाने कहाँ खो सी गयी, आँसुओं की बारी जो आई... घिसटते पाँव से अधरों पे गिरी, सहसा... न जाने खो सी गयी, न जाने कहाँ... खो सी गयी !!! ...ऋतु की कलम से