एक मुनि की एक कुटी में,
स्वर गुंजित, अक्षत चन्दन से,
तिलक सुशोभित भौं मध्य में,
शिव-त्रिशूल, भंगम, भभूत से ||
चन्द्र जटा में शीतल बैठा,
गंगा की धरा जो बहती,
सर्प थिरकता कुंडली साधे,
एक मूल पर कितने धागे ||
भौं-भंगिमा तनी-तनी है,
है ललाट पर शीतल काया,
तीन नेत्र में क्रोध की अग्नि,
सहसा तन पर भस्म रमाया ||
कहत रहीम सुनो भाई साधो,
शिव ही सुन्दर, शिव शक्ति है,
परम धीर, पौरुष का साधक,
शिव स्वरुप, शिव ही भक्ति है ||
...ऋतु की कलम से
कहत रहीम सुनो भाई साधो,
ReplyDeleteशिव ही सुन्दर, शिव शक्ति है,
परम धीर, पौरुष का साधक,
शिव स्वरुप, शिव ही भक्ति है
bahut sundar bhav
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 28 - 9 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
ReplyDeleteकृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
http://charchamanch.blogspot.com/
बहुत सुन्दर भावों से सजी रचना ..
ReplyDeleteकहत रहीम सुनो भाई साधो,
ReplyDeleteशिव ही सुन्दर, शिव शक्ति है,
परम धीर, पौरुष का साधक,
शिव स्वरुप, शिव ही भक्ति है ||
ॐ नम: शिवाय
सत्यम शिवम् सुन्दरम
आपकी रचना की तरह
बेहतरीन रचना! ॐ नम: शिवाय..
ReplyDeleteसंगीता जी... हमें चर्चा मंच पर एक आधार देने के लिए तहे-दिल से शुक्रिया. आपकी मेहनत दिख रही है.. प्रतिभा को कैसे उजागर करते हैं, ये कोई आपसे सीखे.
ReplyDeleteधन्यवाद स्वीकार करें.
ऋतु.
ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.
ReplyDeleteऋतु आप काफी अच्छा लिखती हैं और आशा हैं आप इसी तरह और सुंदर कविताये आगे भी लिखती रहेंगी ...
ReplyDeleteचरण सिन्हा